शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

विद्यार्थी जीवन में स्कूल और शिक्षा का महत्व

Posted by बेनामी

किसी बच्चे के लिए घर के बाद यदि कोई दूसरी नई दुनिया है तो वह है उसका "स्कूल" क्यों कि इससे पहले तक वह अपने घर की दुनिया में खेला कूदा और पला शायद ही बच्चे ने घर की सीमा से बाहर कदम रखा हो, यहाँ तक कि परिवारजनों ने भी बच्चे के तन को बिल्कुल भी आंच नहीं आने दी । लेकिन हम यह अच्छे से जानते हैं कि प्रत्येक बच्चे के लिए घर के संस्कार एवं लाड-प्यार के साथ - साथ बहुत जरूरी होता है उसे शिक्षित करना। और शिक्षा पाने का पहला कदम स्कूल ही है,जहाँ से बच्चे की पहचान एक विद्यार्थी के रूप में की जाती है अर्थात् यहाँ से नये विद्यार्थी जीवन की शुरुआत होती है। स्कूल द्वारा प्रत्येक विद्यार्थी अपने जीवन के ऐसे बीज को बोता है, जहां से वह अपनी लगन, मेहनत और निष्ठा रूपी जल से सींचकर उसी के अनुरूप फल की प्राप्ति करता है। प्रत्येक विद्यार्थी अपने स्कूल में रहकर शिक्षा के साथ -साथ अपने कर्तव्यों व जिम्मेदारीयों को समझता है अर्थात् उसे किताबी ज्ञान के साथ साथ सांसारिक ज्ञान की भी प्राप्ति होती है। वो इसलिए क्योंकि उसे एक दिन स्वयं के साथ -साथ समाज में अच्छा नागरिक बनने के लिए समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना भी बेहद ज़रूरी है। यह तो हम सभी अच्छे से जानते हैं कि हमारे जीवन में अच्छे व्यक्तित्व अर्थात् अनुशासन का कितना बड़ा महत्व है। अच्छे व्यक्तित्व के अभाव के कारण हम अपने जीवन की गाड़ी टूटे - फूटे रस्ते पर ही चला सकते हैं।सोचिये --यदि किसी नई गाड़ी को लगातार टूटे -फूटे और गढ्ढों वाले रस्ते पर दौड़ाया जाये तो उसका क्या हाल होगा। वह थोड़े समय में ही टूट कर बिखर जायेगी। और यही हाल उस व्यक्ति का हो जाता है जिसके जीवन में अच्छे व्यक्तित्व और अच्छी जीवन शैली का अभाव होता है। लेकिन अब प्रश्न तो यह पैदा होता है कि क्या हम सिर्फ किताबों को सरल रूप में पढ़कर अपने व्यक्तित्व और रेवैये को अच्छा बना सकते हैं? शायद नहीं इसके लिए हमें किताबों और स्वयं की गहराई को पहचानना होगा तो इसके लिए आवश्यक है:-- • हमें अपने माता पिता और अध्यापकों के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना। • माता - पिता का बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना। • अध्यापक का विद्यार्थियों के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना। एक समय ऐसा आता है कि माता -पिता बच्चों को प्रति अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं। जब एक बच्चा अपना नाता स्कूल से जोड़ लेता है तो माता -पिता यह समझने लगते हैं कि अब उनका बच्चा बड़ा हो गया है और समझदार भी हो गया है। ऐसे में माता पिता बच्चे को केवल स्कूली शिक्षा के भरोसे छोड़ देते हैं, और बच्चे के लिए थोड़ा सा समय निकाल पाने में भी लापरवाही बरतते हैं अर्थात बच्चे की तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते। तो इसका सीधा सा असर बच्चे की जिंदगी की नींव पर पड़ता है, अर्थात् बच्चे का मानसिक विकास थम सा जाता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि माता -पिता बच्चे के लिए अच्छे मार्गदर्शक बने ताकि बच्चा जीवन की ऊँचाईयों को छू सके। । दूसरी तरफ एक अध्यापक के बारे में कहा जाये तो अवश्य उस अध्यापक का स्तर नीचा समझा जाता है जो छोटी उम्र या छोटी कक्षा के बच्चों को पढ़ाता है । लेकिन वास्तव में देखा जाए तो वह अध्यापक बहुत महान है क्योंकि वह प्रत्येक विद्यार्थी के जीवन की नींव को मजबूत आधार प्रदान करता है । लेकिन साथ ही एक अध्यापक के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि वह प्रत्येक बच्चे को समान नजरिये से देखे, प्रत्येक बच्चे के साथ हंसी- खुशी वाला व्यवहार करे, सोचिए --यदि एक अध्यापक पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थी के बजाय होनहार विद्यार्थी की तरह ज्यादा ध्यान दे, और कमजोर विद्यार्थी को नालायक समझकर नजरअंदाज करता रहे तो वह विद्यार्थी कैसे हौंसले के साथ आगे बढ़ेगा। इससे तो वह विद्यार्थी स्वयं को को कमजोर समझ कर अपने लक्ष्य से पहले ही थक-हार कर बैठ जायेगा। याद रहे - "एक अध्यापक अच्छा अध्यापक तभी कहलाता है, जबउसके विषय के विद्यार्थियों का परिणाम बेहतर होगा" परन्तु इन सब बातों के साथ हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि हम अपने माता -पिता एवं गुरू के द्वारा बताये गये सच्चे रस्ते पर चलें उनके द्वारा जो अच्छी बातें, आदतें बताई एवं सिखाई जाती है,उन पर अम्ल करें उन्हें अपने जीवन में उतारें।

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