गुरुवार, 15 दिसंबर 2016
विद्यार्थी जीवन और लक्ष्य
Posted by बेनामी
3.विद्यार्थी जीवन और लक्ष्य
जब भी बात लक्ष्य की आती है तो प्रत्येक व्यक्ति को गुरू द्रोणाचार्य और उनके शिष्यों के धनुर्विद्या की कहानी सुनाई जाती है, और उससे प्रत्येक व्यक्ति आसानी से समझ जाता है कि उससे क्या शिक्षा मिलती है। अर्थात् हमारी बुद्धि शिक्षा और मेहनत अवश्य हमें मंजिल पाने में सहायक होंगी -लेकिन तब जब हमें अपनी मंजिल का पता हो अर्थात् हमारा कोई निश्चित लक्ष्य हो । यदि हमारा जीवन में कोई पका इरादा और लक्ष्य ही नहीं तो सफलता पाना मुश्किल है।
सोचिये यदि हमें बाज़ार से कोई वस्तु नहीं खरीदनी फिर भी हम बाजार की गल्लीयों में इधर -उधर घूमते रहे तो लोग हमें आवारा कहने लगेंगे। ठीक इसी प्रकार यदि हम जीवन के निश्चित लक्ष्य के बिना सफलता पाना चाहें तो वह भी हमारा आवारापन होगा। अवश्य हमें लक्ष्य को निर्धारित करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, परन्तु लक्ष्य को बनाने और पाने के तौर तरीकों को सीखा जाए तो हमें लक्ष्य बिल्कुल साफ नजर आने लगेगा।
अब हमें इस बात की गहराई में जाने की जरूरत है --"कि हम एक विद्यार्थी कैसे हैं? -क्योंकि हम पढ़ रहे हैं।
,लेकिन हम पढ़ाई क्यों कर रहे हैं -क्योंकि हमें सफलता प्राप्त करनी है।
,लेकिन सफलता मिलेगी कैसे -जब हम निर्धारित लक्ष्य के साथ मेहनत करेंगे।
लक्ष्य प्राप्ति के पीछे हमारा बड़ा मकसद होना बहुत जरूरी है, अवश्य लक्ष्य पाने में हमें मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं। लेकिन हमें उन मुश्किलों को हल करना होगा, हमें अपने लक्ष्य को बीच में छोड़ने की बजाय कठिन मेहनत करनी होगी और लक्ष्य प्राप्ति तक अडिग रहना होगा।
सही मायने में देखे तो हम अपना लक्ष्य नहीं बना पाते या फिर उस पर अडिग नहीं रह पाते तो इसका मुख्य कारण हमारे मन का भ्रम है। जब भी हम अपना लक्ष्य चुनने की इच्छा करते हैं तो हम अपने लक्ष्य के विरोधी बातों अधिक चिन्तन मनन करने लगते हैं जैसे कि -
"यदि मैं अपने लक्ष्य को पाने में सफल नहीं हुआ तो मेरा क्या होगा, मेरे परिवार और समाज के लोग क्या कहेंगे। बस इसी सोच की वजह से हम लक्ष्य की बाधाओं से डर जाते हैं और अपने लक्ष्य को बीच में ही छोड़ देते हैं। तो वहां हमारी असफलता निश्चित हो जाती है। हमारा लक्ष्य नहीं बनाना और उससे दूर भागना ही हमारी सबसे बड़ी हार है ।
जब भी बात लक्ष्य की आती है तो प्रत्येक व्यक्ति को गुरू द्रोणाचार्य और उनके शिष्यों के धनुर्विद्या की कहानी सुनाई जाती है, और उससे प्रत्येक व्यक्ति आसानी से समझ जाता है कि उससे क्या शिक्षा मिलती है। अर्थात् हमारी बुद्धि शिक्षा और मेहनत अवश्य हमें मंजिल पाने में सहायक होंगी -लेकिन तब जब हमें अपनी मंजिल का पता हो अर्थात् हमारा कोई निश्चित लक्ष्य हो । यदि हमारा जीवन में कोई पका इरादा और लक्ष्य ही नहीं तो सफलता पाना मुश्किल है।
सोचिये यदि हमें बाज़ार से कोई वस्तु नहीं खरीदनी फिर भी हम बाजार की गल्लीयों में इधर -उधर घूमते रहे तो लोग हमें आवारा कहने लगेंगे। ठीक इसी प्रकार यदि हम जीवन के निश्चित लक्ष्य के बिना सफलता पाना चाहें तो वह भी हमारा आवारापन होगा। अवश्य हमें लक्ष्य को निर्धारित करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, परन्तु लक्ष्य को बनाने और पाने के तौर तरीकों को सीखा जाए तो हमें लक्ष्य बिल्कुल साफ नजर आने लगेगा।
अब हमें इस बात की गहराई में जाने की जरूरत है --"कि हम एक विद्यार्थी कैसे हैं? -क्योंकि हम पढ़ रहे हैं।
,लेकिन हम पढ़ाई क्यों कर रहे हैं -क्योंकि हमें सफलता प्राप्त करनी है।
,लेकिन सफलता मिलेगी कैसे -जब हम निर्धारित लक्ष्य के साथ मेहनत करेंगे।
लक्ष्य प्राप्ति के पीछे हमारा बड़ा मकसद होना बहुत जरूरी है, अवश्य लक्ष्य पाने में हमें मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं। लेकिन हमें उन मुश्किलों को हल करना होगा, हमें अपने लक्ष्य को बीच में छोड़ने की बजाय कठिन मेहनत करनी होगी और लक्ष्य प्राप्ति तक अडिग रहना होगा।
सही मायने में देखे तो हम अपना लक्ष्य नहीं बना पाते या फिर उस पर अडिग नहीं रह पाते तो इसका मुख्य कारण हमारे मन का भ्रम है। जब भी हम अपना लक्ष्य चुनने की इच्छा करते हैं तो हम अपने लक्ष्य के विरोधी बातों अधिक चिन्तन मनन करने लगते हैं जैसे कि -
"यदि मैं अपने लक्ष्य को पाने में सफल नहीं हुआ तो मेरा क्या होगा, मेरे परिवार और समाज के लोग क्या कहेंगे। बस इसी सोच की वजह से हम लक्ष्य की बाधाओं से डर जाते हैं और अपने लक्ष्य को बीच में ही छोड़ देते हैं। तो वहां हमारी असफलता निश्चित हो जाती है। हमारा लक्ष्य नहीं बनाना और उससे दूर भागना ही हमारी सबसे बड़ी हार है ।
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