1. -:विद्यार्थी की बोलचाल :-
उस व्यक्ति की सराहना करने से शायद ही कोई चूके जिस व्यक्ति की वाणी में मधुरता हो, वहाँ गरीबी -अमीरी कोई मायने नहीं रखती। कितना अच्छा महसूस होता है जब कोई व्यक्ति जरूरत के अनुसार ही बोलता हो, और उस व्यक्ति का दूसरों के साथ पेश आने का तरीका अच्छा हो। इस गुण से घड़ा व्यक्ति केवल अपने से बड़ों से नहीं बल्कि उम्र में अपने से छोटों से भी बहुत ही नरमी और इज्जत से पेश आता है। प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता है कि समाज के लोग उसके साथ सम्मानजनक व्यवहार करे - तो इसके लिए पहले हमें अपने स्वयं का व्यवहार अच्छा बनाना पड़ेगा, हमें अपनी वाणी पर संयम और दूसरों से बातें करते समय सही एवं उचित शब्दों का प्रयोग करना होगा, तो ही ऐसा संभव है। यदि हमारा प्रत्येक व्यक्ति के साथ बोलने का ढंग उचित है तो हमें जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
मान लीजिए यदि कोई व्यक्ति जरूरत से भी ज्यादा बोले तो न जाने वह कितनी बातें बिना महत्व की और दूसरों के लिए उलटी - सीधी कह देगा। वह नहीं जानता कि ऐसा करना,'सुन्दर फसल के साथ उग आई खरपतवार के समान है, जिस खरपतवार का कोई महत्व भी नहीं है और वह खेत की सुन्दरता को भी नष्ट कर देती है। इसी प्रकार फालतू बोलने का महत्व न तो स्वयं के लिए है ना ही दूसरों के लिये। एक सच्चाई --
कम और मीठा बोलने वाला व्यक्ति हमेशा सुन्दर दिखता है और आनंदमय जीवन जीता है।
लेकिन फिर भी कुछ व्यक्तियों के मन में यह भ्रम बना रहता है कि यदि वो कम बोलेगा तो दूसरे उसका मजाक बनायेंगे। तो आइये इस भ्रम को दूर कर लेते हैं - यदि हम जरूरत के अनुसार और मीठा बोलते हैं तो हमें जीवन में "तीन तरह" के 'लोग' मिलेंगे और उनका नजरिया इस प्रकार होगा:-
1•वह व्यक्ति कम ही बोलता है, लगता है 'भोला' या 'मन्दबुद्धि' है।
2•वह व्यक्ति जितना पूछा जाए उतना ही बोलता है, ना जाने उसे किस बात का 'घमंड' है।
3•वह व्यक्ति बहुत अच्छा है, क्यों कि वह जरूरत से अधिक नहीं बोलता।
लेकिन यदि हम लोगों की गलत भावनाओं का शिकार न होकर हमेशा कम और अच्छा बोलने वाला स्वभाव बनाये रखें तो अंततः हमें "तीसरी तरह" के यानी कि सराहनीय लोग ही मिलेंगे। और समाज में हमारी पहचान सम्मानजनक व्यक्ति के रूप में होगी।
अब हमें इन बातों को सकारात्मक और स्पष्ट रूप में समझना जरूरी है अर्थात् यहाँ बोलने को गुनाह नहीं माना गया है बल्कि इस बात का स्पष्टीकरण दिया गया है कि हम जो दूसरों से बातें करते हैं उनमें किस हद तक सच्चाई और श्रेष्ठता है। और कहीं हमारी उन बातों और वाणी से किसी अन्य व्यक्ति को ठेस तो नहीं पहुंच रही है।
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