रविवार, 25 दिसंबर 2016

विद्यार्थी मन का संकोच

Posted by बेनामी

8. मन का संकोच

प्रिय विद्यार्थीयो आज हम इस लेख में पढ़ेंगे कि संकोच क्या है और इसका प्रत्येक व्यक्ति और विद्यार्थी जीवन में क्या , कैसा प्रभाव पड़ता है

संकोच

केवल मानसिक समस्या या फिर यूँ कहें कि मन का भ्रम है। इसे प्रत्येक व्यक्ति अपने मन में जाने - अनजाने में भी पाले रहता है चाहे वह किसी भी रूप में हो । लेकिन मन में संकोच रखकर दूसरे तो क्या हम खुद भी स्वयं को सम्मान नहीं दे सकते। परन्तु यह संकोच है क्या? :-
संकोच - मन में ऐसा वहम जो दूसरों के सामने हमें 'सर' उठाने या 'बोलने' नहीं देता। अर्थात्
•क्या हम दूसरों से नजरें मिलाकर बात कर सकते हैं।
•क्या हम खुद से उच्च स्तर के लोगों के साथ आराम से पेश आ सकते हैं, बिना हिचकिचाहट के।
•क्या हम किसी मेहमान या अजनबी व्यक्ति से पहली बार में अच्छे से मिल लेते हैं बातें कर लेते हैं।
•क्या हम अपने माता - पिता से वो बात आसानी से कह सकते हैं, जिसे बताने में हम शर्मिंदगी और हिचकिचाहट महसूस करते हैं
लेकिन वह बात हमें तन और मन से काफी परेशान कर रही है।

यदि इन सवालों का जवाब हमारे मन से 'हाँ' की बजाय 'नहीं' निकले तो अब हमें इन बातों का कारण पता करना होगा कि ऐसा क्यों होता है? अब सवाल यह कि क्या हमने इन बातों का कारण पता करना चाहा - शायद चाहा होगा लेकिन नहीं पता कर पाये क्यों कि कारण बहुत छोटा बहुत बारीक है - बस यही कि:-
'बंद मन','छोटी सोच' वाला होना और खुले विचारों का ना होना अर्थात् मन में नकारात्मक विचार।
बस इन्हीं छोटे कारणों की वजह से हम दूसरों से खुलकर बात नहीं कर पाते, जब हम किसी उच्च स्तर या नौकरी पेशे वाले व्यक्ति से बातें करते हैं तो हमें हिचकिचाहट महसूस होती है, ऐसा इसलिए क्योंकि हम स्वयं को उस व्यक्ति की तुलना में कम आंकते हैं। लेकिन यह हमारी छोटी सोच है, क्यों कि हो सकता है वह व्यक्ति हमें बहुत अच्छा और महत्व वाला समझता हो अर्थात् उसके मन में बड़पन्न के भाव बिल्कुल भी ना हो
आम तौर पर देखा जाता है कि जब हमारे घर पर कोई मेहमान या अन्य कोई भी व्यक्ति आता है तो हम उससे मिलने से घबराते हैं, या फिर मिल भी लेते हैं तो उससे खुलकर बातें भी नहीं कर पाते और हड़बड़ा जाते हैं। आत्म संकोच की वजह से हम उसे पानी या चाय देने से भी कतराते हैं। हमें यह भी पता होता है कि यदि मेहमान वाजी नहीं की जाये तो हमारी छवि भी खराब होती है। इसके बावजूद भी हम अपने मन में ऐसा वहम पाले रहते हैं जो हमें खुलकर दूसरों के सामने आने नहीं देता।
इसी तरह ही हम अपने माता - पिता से भी अपने मन की बात नहीं कह पाते। बहुत बार हमारे साथ ऐसी बहुत सी घटनाएं घट जाती है जो हमें बहुत परेशान करती है। उदाहरण के तौर पर देखें तो - हम कई बार ऐसी आदत या बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं। लेकिन उसे हम शर्म की वजह से माता - पिता को बताने की बजाय झेलते रहते हैं - जब कि एक दिन हमें उस बूरी लत या बीमारी की वजह से शारीरिक,मानसिक और आर्थिक सभी तरह से नुकसान उठाना पड़ता है। हम यह जानते भी हैं कि यदि हमारी प्रत्येक समस्या के बारे में माता - पिता को बताया जाए तो वे अवश्य हमारी मदद करेंगे। लेकिन आत्मग्लानि एवं संकोच की वजह से हम ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि हमारे मन में इन बातों के प्रति नकारात्मक विचार चलते रहते हैं।
अब यही बात एक विद्यार्थी पर लागू होती है कि यदि विद्यार्थी कक्षा में किसी प्रश्न या अध्याय के समझ न आने पर अध्यापक से दुबारा न पूछे और इस संकोच की वजह से -(कि साथी क्या कहेंगे) ' चुप बैठा रहे तो वह कैसे आगे बढ़ सकता है।
तो इन सब बातों का मतलब यह कि हम शायद गलत नजरिया रखते हैं। स्पष्ट शब्दों में कहें तो हम 'खुले मन' और 'खुले विचारों' वाले नहीं हैं। इसलिए कोशिश करें कि आज से हमें 'खुले मन','खुले विचारों','सकारात्मक सोच' और सुन्दर स्वभाव वाला इंसान बनना है।

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें