सर्वप्रथम आपको इस बात से रूबरू करवा दें कि यह लेख सिर्फ आपके लिए है - वो इसलिए क्योंकि आपने इसे पढ़ने के लिए चुना है। यह सब जानते हुए कि आप बहुत अच्छे इंसान है, इतना ही नहीं आपको दूसरों की सफलता और दूसरों को तरक्की करता देख खुशी मिलती है, आनंद मिलता है। यही वजह है कि आप अपना जीवन बहुत ही मजे और संतोष के साथ जी रहे हैं
ऊपर लिखी बातें कितनी सच्च है यह कोई दूसरा नहीं बल्कि आप स्वयं अच्छे से जानते हैं। यह इसलिए कहना पड़ रहा है कि अभी आपको स्वयं से कुछ प्रश्न करने हैं, जिनका जवाब आपको बिल्कुल नहीं सोचना पड़ेगा बल्कि प्रश्न के साथ ही आपका जवाब तुरंत ही मिल जाएगा, और तुरंत आप कुछ अजीब सा महसूस करेंगे - शायद वह आपकी खुशी हो या मायूसी:-
1• क्या आप किसी विद्यार्थी/ व्यक्ति की सफलता से जलते हैं।
2• क्या आपको दूसरों की तरक्की करना अच्छा नहीं लगता।
3• क्या दूसरों की हंसी/ खुशी आपकी उदासी है।
अब हम लेख के मूल मुद्दे पर पहुंच गए हैं कि यदि ऊपरी तीनों बातों का जवाब 'हाँ' निकलता है तो बस वही ईर्ष्या है। वही हमारा असंतोष, दुख, कष्ट, असफलता सब है। लेकिन यदि ऊपरी तीनों बातों में हमारा जवाब 'नां' है तो हमें तुरंत शांति की अनुभूति हुई है, और अंत्र मन से निकल रहा है कि 'अरे वाह'- हमारे अंदर ये बुराई नाम मात्र की नहीं है। जी हाँ यदि ऐसा है तो समझ लीजिए आप और हम ईर्ष्या से कोई तालुकात नहीं रखते और जो ऊपर तीन बातें हैं वो अब हमें झूठी महसूस हो रही है। वो इसलिए क्योंकि आप हमेशा सफलता पाने के लिए मेहनत पर विश्वास रखते हैं सिर्फ मेहनत पर - वही जीत है। लेकिन क्या कभी आपने विचार किया ये ईर्ष्या .....???? जी हाँ हमारे अंदर ईर्ष्या तभी पैदा होती है जब हम मेहनत नहीं करते या फिर कम मेहनत करते हैं, लेकिन चाहते हैं कि हमें उसका बड़ा लाभ , सफलता मिले - परन्तु ऐसा असंभव है। क्योंकि बड़ी सफलता किसी मेहनती व्यक्ति को पहले ही मिल चुकी होती है शायद वो हमारा दोस्त ही क्यों न हों। शायद यह सब किसी को अच्छा न लगे, और वहां से मन में जलन पैदा ... निश्चित है - ईर्ष्या।
विचार कीजिए यदि कोई विद्यार्थी अपनी कठिन मेहनत से परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ले या हमसे अधिक अंक प्राप्त कर ले - तो क्या हम उस पर जलन महसूस करें, उसकी सफलता को दूसरों के सामने घटिया बतायें।
अरे नहीं रे नहीं क्योंकि इस बात को हम और दूसरे सभी व्यक्ति अच्छे से जानते हैं कि उसकी इस बड़ी सफलता का राज क्या है - सिर्फ मेहनत
और मेहनत करने की ताकत हम सभी के पास है जिसे केवल सुन्दर भावना से परखा और किया जा सकता है।
यदि हम किसी विद्यार्थी/व्यक्ति को ऊँचाइयाँ छूता देख उससे ईर्ष्या करने लगें तो समझ लीजिए इससे किसी ओर का नुकसान नहीं बल्कि हमारा स्वयं का पूरा जीवन नष्ट हो रहा है। ईर्ष्या - यानी हमें स्वयं की मेहनत किये कराये पर कोई विश्वास नहीं, जिससे हम केवल सामने वाले की सफलता को महसूस कर सकते हैं- स्वयं सफलता के कोई प्रयास नहीं, क्यों कि यदि ईर्ष्या को नहीं हटाया जाता है तो यह हमें अपने लक्ष्य से भटका देती है। जिसका नतीजा यह रहता है कि फिर व्यक्ति दूसरों पर गुस्सा करने और उन्हें बूरा बताने में लग जाता है।
इस बात को भी परख लीजिए कि जब भी कोई व्यक्ति किसी दूसरे से ईर्ष्या रखता है तो उसे लगता है मानो सामने वाला उसका दुश्मन हो जिससे ईर्ष्यालु व्यक्ति का नजरिया भी उसके प्रति बदल जाता है। लेकिन वास्तविक यह होती है कि वह व्यक्ति ऐसा बिलकुल नहीं है , इस बात का अहसास दोनों व्यक्ति जब आपस में मिलते हैं तो अवश्य होता है, लेकिन एक नजर में वह सब जान पड़ता है कि आपके दिमाग में उसके प्रति क्या विचार चल रहा है। उस व्यक्ति के अच्छे व्यवहार को जानकर ईर्ष्या रखने वाले व्यक्ति को शायद शर्मिंदा भी होना पड़े।
इसलिए बेहतर यही है कि हम किसी भी अपने पराये से किसी प्रकार का द्वेष अपने मन में न रखें और हमेशा दूसरों की खुशी और सफलता का हिस्सा बनें। ताकि हम एक संतोषजनक जीवन जी सकें ।
आपको यह लेख कैसा लगा हमें अवश्य लिखें।
ऊपर लिखी बातें कितनी सच्च है यह कोई दूसरा नहीं बल्कि आप स्वयं अच्छे से जानते हैं। यह इसलिए कहना पड़ रहा है कि अभी आपको स्वयं से कुछ प्रश्न करने हैं, जिनका जवाब आपको बिल्कुल नहीं सोचना पड़ेगा बल्कि प्रश्न के साथ ही आपका जवाब तुरंत ही मिल जाएगा, और तुरंत आप कुछ अजीब सा महसूस करेंगे - शायद वह आपकी खुशी हो या मायूसी:-
1• क्या आप किसी विद्यार्थी/ व्यक्ति की सफलता से जलते हैं।
2• क्या आपको दूसरों की तरक्की करना अच्छा नहीं लगता।
3• क्या दूसरों की हंसी/ खुशी आपकी उदासी है।
अब हम लेख के मूल मुद्दे पर पहुंच गए हैं कि यदि ऊपरी तीनों बातों का जवाब 'हाँ' निकलता है तो बस वही ईर्ष्या है। वही हमारा असंतोष, दुख, कष्ट, असफलता सब है। लेकिन यदि ऊपरी तीनों बातों में हमारा जवाब 'नां' है तो हमें तुरंत शांति की अनुभूति हुई है, और अंत्र मन से निकल रहा है कि 'अरे वाह'- हमारे अंदर ये बुराई नाम मात्र की नहीं है। जी हाँ यदि ऐसा है तो समझ लीजिए आप और हम ईर्ष्या से कोई तालुकात नहीं रखते और जो ऊपर तीन बातें हैं वो अब हमें झूठी महसूस हो रही है। वो इसलिए क्योंकि आप हमेशा सफलता पाने के लिए मेहनत पर विश्वास रखते हैं सिर्फ मेहनत पर - वही जीत है। लेकिन क्या कभी आपने विचार किया ये ईर्ष्या .....???? जी हाँ हमारे अंदर ईर्ष्या तभी पैदा होती है जब हम मेहनत नहीं करते या फिर कम मेहनत करते हैं, लेकिन चाहते हैं कि हमें उसका बड़ा लाभ , सफलता मिले - परन्तु ऐसा असंभव है। क्योंकि बड़ी सफलता किसी मेहनती व्यक्ति को पहले ही मिल चुकी होती है शायद वो हमारा दोस्त ही क्यों न हों। शायद यह सब किसी को अच्छा न लगे, और वहां से मन में जलन पैदा ... निश्चित है - ईर्ष्या।
विचार कीजिए यदि कोई विद्यार्थी अपनी कठिन मेहनत से परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ले या हमसे अधिक अंक प्राप्त कर ले - तो क्या हम उस पर जलन महसूस करें, उसकी सफलता को दूसरों के सामने घटिया बतायें।
अरे नहीं रे नहीं क्योंकि इस बात को हम और दूसरे सभी व्यक्ति अच्छे से जानते हैं कि उसकी इस बड़ी सफलता का राज क्या है - सिर्फ मेहनत
और मेहनत करने की ताकत हम सभी के पास है जिसे केवल सुन्दर भावना से परखा और किया जा सकता है।
यदि हम किसी विद्यार्थी/व्यक्ति को ऊँचाइयाँ छूता देख उससे ईर्ष्या करने लगें तो समझ लीजिए इससे किसी ओर का नुकसान नहीं बल्कि हमारा स्वयं का पूरा जीवन नष्ट हो रहा है। ईर्ष्या - यानी हमें स्वयं की मेहनत किये कराये पर कोई विश्वास नहीं, जिससे हम केवल सामने वाले की सफलता को महसूस कर सकते हैं- स्वयं सफलता के कोई प्रयास नहीं, क्यों कि यदि ईर्ष्या को नहीं हटाया जाता है तो यह हमें अपने लक्ष्य से भटका देती है। जिसका नतीजा यह रहता है कि फिर व्यक्ति दूसरों पर गुस्सा करने और उन्हें बूरा बताने में लग जाता है।
इस बात को भी परख लीजिए कि जब भी कोई व्यक्ति किसी दूसरे से ईर्ष्या रखता है तो उसे लगता है मानो सामने वाला उसका दुश्मन हो जिससे ईर्ष्यालु व्यक्ति का नजरिया भी उसके प्रति बदल जाता है। लेकिन वास्तविक यह होती है कि वह व्यक्ति ऐसा बिलकुल नहीं है , इस बात का अहसास दोनों व्यक्ति जब आपस में मिलते हैं तो अवश्य होता है, लेकिन एक नजर में वह सब जान पड़ता है कि आपके दिमाग में उसके प्रति क्या विचार चल रहा है। उस व्यक्ति के अच्छे व्यवहार को जानकर ईर्ष्या रखने वाले व्यक्ति को शायद शर्मिंदा भी होना पड़े।
इसलिए बेहतर यही है कि हम किसी भी अपने पराये से किसी प्रकार का द्वेष अपने मन में न रखें और हमेशा दूसरों की खुशी और सफलता का हिस्सा बनें। ताकि हम एक संतोषजनक जीवन जी सकें ।
आपको यह लेख कैसा लगा हमें अवश्य लिखें।